AMU के प्रो. एम.जे. वारसी ने एमिटी विश्वविद्यालय की अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में दिया मुख्य व्याख्यान

प्रो.एम.जे. वारसी

हिन्दुस्तान मिरऱ :
अलीगढ़, 9 जनवरी: अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) के भाषा विज्ञान विभाग के अध्यक्ष और भारतीय भाषा विज्ञान सोसायटी के अध्यक्ष प्रोफेसर एम.जे. वारसी ने एमिटी विश्वविद्यालय, नोएडा में आयोजित एक प्रतिष्ठित अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में मुख्य व्याख्यान प्रस्तुत किया। यह संगोष्ठी ‘मानव युग में डिजिटल मानविकी’ विषय पर आधारित थी और इसे वैज्ञानिक और तकनीकी शब्दावली आयोग (सीएसटीटी), शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार के सहयोग से एमिटी इंस्टीट्यूट ऑफ इंग्लिश स्टडीज एंड रिसर्च (एआईईएसआर) द्वारा आयोजित किया गया था।

संगोष्ठी के अंतर्गत आयोजित सैटेलाइट कार्यशाला में प्रोफेसर वारसी ने ‘कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) और क्षेत्रीय भाषा शिक्षा का भविष्य और अनुवाद की भूमिका’ विषय पर अपने विचार प्रस्तुत किए। उन्होंने बताया कि तकनीकी युग में एआई न केवल संचार और ज्ञान को नए आयाम दे रहा है, बल्कि सीखने के पारंपरिक तरीकों को भी बदल रहा है। हालांकि, उन्होंने क्षेत्रीय भाषाओं के भविष्य पर गहराई से चिंता व्यक्त की और इस बात पर जोर दिया कि तकनीकी प्रगति के बावजूद क्षेत्रीय भाषाओं को प्राथमिकता दिए बिना सांस्कृतिक और भाषाई विविधता को संरक्षित करना संभव नहीं है।

भारतीय भाषाओं के डिजिटल संसाधनों पर जोर

कार्यशाला के दौरान प्रोफेसर वारसी ने भारतीय भाषाओं के लिए डिजिटल संसाधनों के विकास की आवश्यकता को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि डिजिटल संसाधनों की प्रगति से न केवल भाषाई संसाधनों को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि प्रौद्योगिकी तक सस्ती और सुलभ पहुंच से डिजिटल विभाजन को भी कम किया जा सकेगा।

उन्होंने बताया कि मानवजनित युग में डिजिटल तकनीक के केंद्र में कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न आते हैं, जैसे डिजिटल प्रतिमानों का नियंत्रण, व्यावसायीकरण और व्यक्तिगत स्वतंत्रता। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि भारतीय भाषाओं के लिए बेहतर संसाधन तैयार करने के लिए सरकार, शैक्षणिक संस्थानों और समाज को सामूहिक प्रयास करने होंगे।

संगोष्ठी में व्यापक भागीदारी

इस अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में देश-विदेश के अनेक विद्वानों, शोधार्थियों और शिक्षाविदों ने भाग लिया। संगोष्ठी का उद्देश्य डिजिटल मानविकी के क्षेत्र में हो रहे परिवर्तनों और उनके प्रभावों पर गहन विचार-विमर्श करना था।

प्रोफेसर वारसी के व्याख्यान ने इस आयोजन को एक नई दिशा प्रदान की, जहां उन्होंने भारतीय भाषाओं की डिजिटल संरचना को मजबूत बनाने और कृत्रिम बुद्धिमत्ता के माध्यम से भाषाई शिक्षा को नई ऊंचाई देने के प्रयासों पर बल दिया।

यह संगोष्ठी और प्रोफेसर एम.जे. वारसी का व्याख्यान न केवल तकनीकी प्रगति के संदर्भ में भारतीय भाषाओं के महत्व को उजागर करता है, बल्कि भाषाई विविधता और संस्कृति के संरक्षण के लिए सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता पर भी ध्यान केंद्रित करता है। इससे न केवल भारत में, बल्कि वैश्विक स्तर पर डिजिटल मानविकी के क्षेत्र में नए आयाम जुड़ने की संभावना है।

रिपोर्ट : हिन्दुस्तान मिरऱ

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