हिंदुस्तान मिरर: अलीगढ़ 24 फरवरीः अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के आधुनिक भारतीय भाषा विभाग के मराठी अनुभाग द्वारा अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के अवसर पर “21वीं सदी का साहित्य” विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। उद्घाटन भाषण में मुख्य अतिथि राष्ट्रीय पटकथाकार, प्रसारणकर्ता, थिएटर निर्देशक और जामिया मिलिया इस्लामिया के प्रोफेसर दानिश इकबाल ने साहित्य के बदलते स्वरूप पर बोलते हुए कहा कि “विस्थापन, पुनः कल्पना, परंपरा, आधुनिकता और वैश्वीकरण के गहरे अंतर्संबंध ने 21वीं सदी के दूसरे दशक में विश्व साहित्य के लिए एक परिवर्तनकारी युग का निर्माण किया है।
उन्होंने कहा कि यह साहित्य प्रवास, पहचान और वास्तविकता के पुनर्गठन से जुड़ा हुआ है।” उन्होंने भारतीय साहित्य की समृद्ध विरासत और वैश्विक साहित्य में उसके योगदान पर भी जोर दिया। प्रो. दानिश ने यह भी कहा कि विज्ञान, पौराणिक कथाएँ और वैकल्पिक इतिहासों के साथ साहित्य में नई संभावनाएं खुल रही हैं।
मानद् अतिथि उर्दू विभाग के प्रो. जिया उर रहमान ने 21वीं सदी के साहित्य की जटिलताओं, सफलताओं और दृष्टिकोण पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, “21वीं सदी का साहित्य वैश्वीकरण की चुनौतियों का सामना कर रहा है, और डिजिटल प्लेटफार्मों ने साहित्य में नए दृष्टिकोण को जन्म दिया है।”
उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता कला संकाय के अधिष्ठाता और अंग्रेजी विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. रिजवान खान ने कहा कि 21वीं सदी का साहित्य आधुनिक दुनिया की जटिलताओं को दर्शाता है और इसमें बदलाव के साथ विविध आवाजें और दृष्टिकोण हैं। प्रो. रिजवान ने कहा कि हमारा देश एक बहुसंस्कृति और बहु भाषाओं वाला देश है। इसलिये आवश्यक है कि साहित्य में लिटरेचर थ्योरी के बजाए लिटरेचर पर मुख्य रूप से फोकस किया जाए।
संगोष्ठी के निदेशक एवं मराठी अनुभाग के प्रभारी डॉ. ताहेर एच पठान ने 21वीं सदी के साहित्य पर अपने विचार साझा करते हुए कहा, “यह युग तकनीकी प्रगति, वैश्वीकरण और सामाजिक-राजनीतिक परिवर्तनों का है। साहित्य इन परिवर्तनों को दर्शाता है और डिजिटल क्रांति ने साहित्यिक सृजन और प्रचार-प्रसार के नए तरीके विकसित किए हैं।”
विभाग के कार्यवाहक अध्यक्ष प्रो. नजूम ए. ने स्वागत भाषण में कहा कि वर्तमान कृत्रिम बुद्धिमत्ता क्रांति मानवता को दार्शनिक संकट में डाल रही है। उन्होंने भारत की बहु-सांस्कृतिक विरासत और साहित्यिक अभिव्यक्तियों पर व्यक्त विचार व्यक्त किये।
इस दौरान डॉ. ताहेर पठान की पुस्तक “श्री गुरु ग्रंथ साहिब में दर्ज संत नामदेव जी की वाणी” का लोकार्पण भी अतिथियों द्वारा किया गया। संगोष्ठी में विभिन्न विश्वविद्यालयों के शोधार्थियों और विद्वानों ने अपने शोध आलेख प्रस्तुत करेंगे।
कार्यक्रम का संचालन डा. शाकिर अहमद नायकू ने किया और आभार डा. आर तामिल सेल्वन ने जताया।