CAG रिपोर्ट: दिल्ली में शराब घोटाले के 10 प्रमुख खुलासे

हिन्दुस्तान मिरर | 25 फरवरी 2025:

दिल्ली की केजरीवाल सरकार की 2021-22 की आबकारी नीति को लेकर नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की रिपोर्ट में कई चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं। दिल्ली विधानसभा में पेश की गई इस रिपोर्ट में भारी राजस्व नुकसान, नियमों की अनदेखी और भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए गए हैं। आइए, जानते हैं इस घोटाले से जुड़े 10 प्रमुख बिंदु:

  1. ₹2,002.68 करोड़ का भारी राजस्व नुकसान
    • CAG रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि दिल्ली सरकार की आबकारी नीति से राज्य को ₹2,002.68 करोड़ का नुकसान हुआ।
    • गैर-अनुरूप क्षेत्रों में शराब की दुकानें न खोलने से ₹941.53 करोड़ का नुकसान हुआ।
    • सरेंडर किए गए लाइसेंसों का फिर से टेंडर न करने के कारण ₹890 करोड़ का नुकसान हुआ।
    • COVID-19 के नाम पर ज़ोनल लाइसेंसियों को ₹144 करोड़ की छूट दी गई।
    • सुरक्षा जमा राशि समय पर वसूलने में विफलता से ₹27 करोड़ की हानि हुई।
  2. लाइसेंस नियमों का उल्लंघन
    • दिल्ली एक्साइज नियम, 2010 के नियम 35 का पालन नहीं किया गया।
    • थोक विक्रेताओं को लाइसेंस दिए गए, जो खुदरा और निर्माण कंपनियों से जुड़े थे, जिससे आपूर्ति श्रृंखला में भ्रष्टाचार हुआ।
  3. थोक विक्रेताओं का लाभ मार्जिन 5% से बढ़ाकर 12% किया गया
    • थोक विक्रेताओं के लाभ मार्जिन को 5% से बढ़ाकर 12% कर दिया गया।
    • सरकारी लैब्स में गुणवत्ता जांच के नाम पर यह लाभ दिया गया, लेकिन जांच के लिए कोई प्रयोगशाला स्थापित नहीं हुई।
    • इससे थोक विक्रेताओं को भारी मुनाफा हुआ, जबकि सरकार का राजस्व कम हो गया।
  4. लाइसेंसिंग प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी
    • लाइसेंस जारी करने से पहले आवेदकों की वित्तीय स्थिति, दिवालियापन और आपराधिक पृष्ठभूमि की जांच नहीं की गई।
    • ₹100 करोड़ के निवेश की आवश्यकता के बावजूद वित्तीय पात्रता की कोई जांच नहीं हुई।
    • इससे प्रॉक्सी स्वामित्व (किसी और के नाम पर काम करना) और राजनीतिक पक्षपात के आरोप लगे।
  5. विशेषज्ञों की सिफारिशों की अनदेखी
    • CAG रिपोर्ट में कहा गया कि दिल्ली सरकार ने अपनी ही विशेषज्ञ समिति की सिफारिशों को नजरअंदाज किया।
    • एक्साइज पॉलिसी तैयार करते समय विशेषज्ञों द्वारा दिए गए सुझावों को लागू नहीं किया गया।
  6. मोनोपॉली और शराब कार्टेल को बढ़ावा
    • नई नीति के तहत एक ही आवेदक को 54 शराब की दुकानें संचालित करने की अनुमति दी गई, जबकि पहले की सीमा 2 थी।
    • सरकारी नियंत्रण हटाकर निजी कंपनियों को बाजार पर हावी होने का मौका दिया गया।
  7. ब्रांड एकाधिकार और कृत्रिम मूल्य निर्धारण
    • शराब निर्माताओं को केवल एक ही थोक विक्रेता से जुड़ने के लिए बाध्य किया गया।
    • दिल्ली में बिकने वाली 70% शराब केवल 25 ब्रांडों की थी, जिनका नियंत्रण 3 थोक विक्रेताओं के पास था।
    • इससे शराब की कीमतें मनमाने ढंग से बढ़ाई गईं और उपभोक्ताओं के पास सीमित विकल्प रह गए।
  8. कैबिनेट प्रक्रियाओं का उल्लंघन
    • CAG ने बताया कि दिल्ली सरकार ने इस नीति से जुड़े महत्वपूर्ण वित्तीय निर्णय कैबिनेट और उपराज्यपाल (LG) से परामर्श किए बिना लिए।
    • नीति लागू करने से पहले जरूरी अनुमोदन नहीं लिया गया।
  9. गैर-कानूनी शराब की दुकानों की स्थापना
    • आवासीय और मिश्रित भूमि उपयोग क्षेत्रों में शराब की दुकानें खोलने के लिए MCD और DDA की अनुमति नहीं ली गई।
    • कई मामलों में शराब की दुकानें व्यावसायिक क्षेत्र बताकर लाइसेंस जारी किए गए, जो अवैध रूप से संचालित हो रही थीं।
  10. गुणवत्ता परीक्षण मानकों का उल्लंघन
    • बिना गुणवत्ता जांच रिपोर्ट के शराब लाइसेंस जारी किए गए।
    • रिपोर्ट में पाया गया कि 51% विदेशी शराब की परीक्षण रिपोर्ट या तो पुरानी थीं, गायब थीं या बिना तारीख की थीं।
    • जहरीले पदार्थों (जैसे भारी धातु और मिथाइल अल्कोहल) की जांच में भी लापरवाही बरती गई।

CAG रिपोर्ट के इन खुलासों ने दिल्ली सरकार की शराब नीति पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। इस रिपोर्ट के बाद राजनीतिक हलकों में हड़कंप मच गया है।

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