South की फ़िल्मों का DNA : प्रेम और वीरता

    साउथ की फ़िल्में हम में से किसने नहीं देखी! फ़िल्मों में दिलचस्पी रखने वाला शायद ही ऐसा कोई व्यक्ति होगा जिसने दक्षिण भारत की फ़िल्में ना देखी हों! ऐक्शन, कॉमेडी, थ्रिल, प्यार के तमामतर अहसासों से भरपूर ये फ़िल्में सहज ही दर्शकों के दिल में जगह बना लेती हैं। लेकिन आप सब ने गौर किया होगा कि इन सब के साथ जो एक बात इनमें कॉमन है, वह है — प्रेम और वीरता।

    आप कोई भी फ़िल्म देख लें, कहानी का प्लॉट कुछ भी हो, किरदार में अभिनेता-अभिनेत्री कोई भी हो, देशकाल कुछ भी हो— प्राचीन काल हो, ऐतिहासिक काल हो या आज का ही कोई कालखंड— सब में— एक बात कॉमन होती है — प्रेम और वीरता।

    सवाल ये है कि दक्षिण की फ़िल्में इन्हीं दो मुख्य आधारों के इर्द-गिर्द ही क्यूँ घूमती रहती हैं!! वज़ह जानने के लिए पहले हमें एक क़िस्सा जानना होगा। और वो क़िस्सा दक्षिण भारत की ‘संगम संस्कृति’ से जुड़ा हुआ है।

    संगम संस्कृति का इतिहास हजारों साल पुराना है। संगम संस्कृति लगभग 2000 से 2500 साल पुरानी है लेकिन इसके मूल तत्व वैदिक युग और द्रविड़ सभ्यता से भी जुड़े हैं। इस संस्कृति ने प्राचीन भारत की विविधता और समन्वय की भावना को प्रकट किया और समय के साथ इसे और अधिक समृद्ध बनाया। इस संगम संस्कृति में प्राप्त संगम साहित्य में कई ऐसी कहानियाँ हैं जो प्रेम और वीरता को उस समय का सबसे अभीष्ट मानव-मूल्य बनाती हैं।

    दक्षिण के इस संगम साहित्य में लिखे गए कुछ प्रमुख महाकाव्य ही वस्तुतः ‘प्रेम और वीरता’ को इस पूरी संस्कृति का आधार-स्तम्भ बनाने में पर्याप्त हैं।

    शिल्पाद्दीकारम तमिल साहित्य की पंचमहाकाव्यों में से एक है। इसका श्रेय इलांगो अडिगल को दिया जाता है, जो चेरा राजवंश के राजकुमार थे। यह महाकाव्य प्रेम, निष्ठा, न्याय और नैतिकता की एक अद्भुत कहानी प्रस्तुत करता है।

    मणिमेकलै : सतनार

    जीवकचिंतामणि : थिरुतक्कतेवर

    वलयापति : अज्ञात

    कुंडलकेशी : नागकुट्टनार

    #शिल्पाद्दीकारम की कहानी :

    कहानी के मुख्य पात्र कोवलन, कण्णगी और माधवी हैं।

    प्रथम भाग: कोवलन और कण्णगी का प्रेम

    कोवलन एक धनी व्यापारी का बेटा है और कण्णगी उसकी पत्नी है। दोनों का विवाह प्रेम और निष्ठा से संपन्न होता है। लेकिन विवाह के बाद कोवलन एक नर्तकी माधवी के प्रेम में पड़ जाता है। माधवी एक कुशल नर्तकी और गायिका है। कोवलन माधवी के साथ रहने लगता है और अपने पूरे धन को उनके साथ विलासिता में बर्बाद कर देता है।

    द्वितीय भाग: कण्णगी की निष्ठा और कोवलन की त्रुटि

    धन के खत्म होने पर कोवलन को अपनी गलती का एहसास होता है, और वह कण्णगी के पास लौट आता है। कण्णगी, जो अपने पति के प्रति अत्यंत निष्ठावान है, उसे माफ कर देती है। दोनों नए सिरे से जीवन शुरू करने का फैसला करते हैं और मदुरै (पांड्य साम्राज्य की राजधानी) की ओर प्रस्थान करते हैं।

    तृतीय भाग: कोवलन की मृत्यु और कण्णगी का प्रतिशोध

    मदुरै पहुँचने पर कोवलन अपनी पत्नी के कंगन (शिल्प/सिलप्पु) को बेचने का प्रयास करता है ताकि नया व्यापार शुरू किया जा सके। लेकिन दुर्भाग्य से, राजा के आभूषण से कंगन की समानता के कारण कोवलन पर राजकाज में चोरी का आरोप लगता है। बिना किसी जांच के, राजा कोवलन को मृत्युदंड दे देता है।

    जब कण्णगी को यह पता चलता है, तो वह अदालत में जाती है और राजा को निर्दोष कोवलन की हत्या के लिए जिम्मेदार ठहराती है। अपनी सच्चाई साबित करने के लिए वह अपने दूसरे कंगन को तोड़ती है, जिससे आग निकलती है। यह चमत्कार राजा और रानी को उनकी गलती का एहसास कराता है। राजा अपने कृत्य के लिए पश्चाताप करता है और आत्महत्या कर लेता है।

    अंतिम भाग: कण्णगी का त्याग और मोक्ष

    कण्णगी मदुरै शहर को अपने शोक और गुस्से से जलाकर राख कर देती है। इसके बाद वह देवताओं से मिल जाती है और उसे मोक्ष प्राप्त होता है।

    वस्तुतः शिल्पाद्दीकारम के माध्यम से हमें ये पता चलता है कि किस तरह प्रेम और उसको प्राप्त करने के क्रम में कोई व्यक्ति कैसे साहस के तमाम सोपानों को पार कर जाता है। यह कहानी शक्ति, सच्चे प्रेम,  वीरता और न्याय की विजय का प्रतीक है। कण्णगी की कहानी दर्शाती है कि एक निष्ठावान और साहसी स्त्री अन्याय के विरुद्ध कितनी वीर हो सकती है। यह महाकाव्य तमिल संस्कृति, कला, नृत्य और संगीत की भी गहराई से झलक प्रस्तुत करता है।

    इस कहानी; और ‘संगम संस्कृति’ के आज की पीढ़ी में नैरंतर्य के माध्यम से हम यह सकते हैं दक्षिण की फ़िल्मों में प्रेम और वीरता के मूल्य ही वस्तुतः मुख्य होते हैं, शेष सब गौण।

    — डॉ. अविनीश प्रकाश सिंह

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