हिन्दुस्तान मिरर : नई दिल्ली, 10 मार्च 2025: भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICSSR), भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद (ICHR), भारतीय दर्शन अनुसंधान परिषद (ICPR) तथा अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ (ABRSM) के संयुक्त तत्वावधान में विज्ञान भवन, दिल्ली में 9-10 मार्च 2025 को “स्वदेशी ज्ञान परम्परा एवं धारणक्षम विकास” विषय पर एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का भव्य आयोजन किया गया। इस सम्मेलन में देश-विदेश के शिक्षाविदों, विचारकों, शोधकर्ताओं तथा विद्यार्थियों ने भाग लिया।
मुख्य अतिथियों की उपस्थिति इस महत्वपूर्ण सम्मेलन में भारत सरकार के शिक्षा मंत्री श्री धर्मेंद्र प्रधान एवं केंद्रीय मंत्री श्री भूपेंद्र यादव मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। अपने उद्घाटन भाषण में श्री प्रधान ने भारतीय शिक्षा प्रणाली में पारंपरिक ज्ञान परंपरा के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि भारत की समृद्ध दार्शनिक और वैज्ञानिक धरोहर को आधुनिक शिक्षा प्रणाली में समाविष्ट करना आवश्यक है। श्री यादव ने धारणक्षम (सस्टेनेबल) विकास में भारतीय परंपराओं की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए कहा कि हमारी संस्कृति में पर्यावरण-संरक्षण की अवधारणा सदियों से विद्यमान रही है।
भारतीय ज्ञान परंपरा का दार्शनिक परिप्रेक्ष्य दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रख्यात विद्वान डॉ. ऋषिकेश सिंह ने “भारतीय ज्ञान परंपरा” विषय पर अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने बताया कि भारतीय मनीषा ने सदा ही सतत-समावेशी दृष्टिकोण अपनाया है। हमारी ज्ञान परंपरा न केवल दार्शनिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से समृद्ध है, बल्कि सामाजिक और वैज्ञानिक क्षेत्रों में भी इसका योगदान अतुलनीय है।
उन्होंने उदाहरण स्वरूप वेदों, उपनिषदों और स्मृतियों में वर्णित ज्ञान प्रणाली का उल्लेख करते हुए कहा कि भारत में शिक्षा प्रणाली केवल शाब्दिक ज्ञान तक सीमित नहीं थी, बल्कि यह व्यवहारिक और नैतिक शिक्षा पर भी बल देती थी। यही कारण है कि भारत की पारंपरिक शिक्षा व्यवस्था पर्यावरणीय संतुलन, समाज-कल्याण और मानवीय मूल्यों को प्राथमिकता देती रही है।
संवाद और विमर्श इस अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के दौरान विभिन्न विषयों पर कई सार्थक परिचर्चाएँ आयोजित की गईं। मुख्य विषयों में निम्नलिखित बिंदुओं पर विस्तृत विमर्श हुआ:
- स्वदेशी ज्ञान परंपरा का वैश्विक संदर्भ – भारतीय ज्ञान परंपरा की प्रासंगिकता और इसकी अंतरराष्ट्रीय मान्यता।
- धारणक्षम विकास और भारतीय परंपराएँ – भारतीय कृषि, आयुर्वेद, वास्तुशास्त्र और जल संरक्षण प्रणालियों की भूमिका।
- शिक्षा नीति और स्वदेशी परिप्रेक्ष्य – राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में पारंपरिक ज्ञान की भूमिका।
- आधुनिक विज्ञान एवं भारतीय दृष्टिकोण – योग, आयुर्वेद और पंचमहाभूत सिद्धांत का वैज्ञानिक विश्लेषण।
सम्मेलन का निष्कर्ष इस दो दिवसीय सम्मेलन का समापन एक महत्वपूर्ण प्रस्ताव के साथ हुआ, जिसमें यह संकल्प लिया गया कि भारतीय पारंपरिक ज्ञान को वैश्विक मंच पर उचित पहचान दिलाने के लिए शैक्षिक नीतियों में इसे अनिवार्य रूप से सम्मिलित किया जाएगा। प्रतिभागियों ने यह भी सुझाव दिया कि भारतीय ज्ञान परंपरा के विभिन्न पहलुओं पर और अधिक शोध किए जाने चाहिए तथा इन्हें आधुनिक तकनीक के माध्यम से विश्व पटल पर लाने की आवश्यकता है।
इस सम्मेलन ने न केवल शैक्षिक जगत में बल्कि नीति-निर्माताओं, शोधकर्ताओं और विद्यार्थियों के बीच भी भारतीय ज्ञान परंपरा के प्रति जागरूकता बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।