पढ़िए ज्ञानेंद्र मिश्रा का लेख:
हिन्दुस्तान मिरर: 22 फरवरी: 1994 भारतीय संसद के इतिहास में एक ऐसा दिन है जिसने भारत की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता को अंतरराष्ट्रीय मंच पर स्पष्ट रूप से स्थापित किया। इस दिन संसद ने सर्वसम्मति से एक ऐतिहासिक प्रस्ताव पारित किया, जिसमें पाकिस्तान अधिक्रांत जम्मू-कश्मीर (POJK) को भारत का अभिन्न अंग घोषित किया गया। यह प्रस्ताव केवल एक औपचारिकता नहीं थी, बल्कि भारत के राष्ट्रीय संकल्प, ऐतिहासिक अधिकार और भविष्य की कूटनीतिक दिशा का प्रतीक भी था।
जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय:
1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद जम्मू-कश्मीर एक स्वतंत्र रियासत थी। जब पाकिस्तान ने कबायली हमलावरों के सहारे जम्मू-कश्मीर पर हमला किया, तब महाराजा हरि सिंह ने भारत सरकार से सहायता मांगी और इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन पर हस्ताक्षर कर जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय किया। इसके बावजूद पाकिस्तान ने इस क्षेत्र में अपना अवैध कब्जा जमा लिया, जिसे आज पाकिस्तान अधिक्रांत जम्मू-कश्मीर (POJK) के नाम से जाना जाता है।
1948 में भारत ने इस मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र में उठाया। परिणामस्वरूप, 1 जनवरी 1949 को युद्धविराम लागू हुआ, लेकिन तब तक जम्मू-कश्मीर का एक बड़ा हिस्सा पाकिस्तान के अवैध कब्जे में जा चुका था।
1990 का दशक और बढ़ता आतंकवाद:
1980 के दशक के अंत में पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर में उग्रवाद को बढ़ावा देना शुरू कर दिया। 1990 के दशक में स्थिति इतनी बिगड़ गई कि कश्मीरी पंडितों को नरसंहार और जातीय सफाए का सामना करना पड़ा, जिससे वे घाटी छोड़ने को मजबूर हो गए। पाकिस्तान की ओर से प्रायोजित आतंकवाद ने भारत की अखंडता के लिए गंभीर चुनौती उत्पन्न की।
इसी पृष्ठभूमि में भारतीय संसद ने 22 फरवरी 1994 को एक ऐतिहासिक प्रस्ताव पारित किया, जिसमें जम्मू-कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग बताया गया और पाकिस्तान से उसके कब्जे वाले क्षेत्रों को खाली करने की मांग की गई।
भारतीय संसद के प्रस्ताव के प्रमुख बिंदु:
1. जम्मू-कश्मीर पर भारत का संप्रभु अधिकार – पूरा जम्मू-कश्मीर, जिसमें POJK भी शामिल है, भारत का अभिन्न हिस्सा है।
2. पाकिस्तान का अवैध कब्जा – पाकिस्तान ने जिस क्षेत्र पर कब्जा कर रखा है, उसे तुरंत खाली करना चाहिए।
3. कूटनीतिक संदेश – भारत किसी भी विदेशी हस्तक्षेप को अस्वीकार करता है और अपने भूभाग पर पूरा अधिकार रखता है।
4. राष्ट्रीय एकता की प्रतिबद्धता – भारत अपनी अखंडता और संप्रभुता की रक्षा के लिए हर संभव कदम उठाएगा।
POJK का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व:
1. प्राचीन भारतीय संस्कृति का केंद्र – प्राचीन ग्रंथों में कश्मीर का उल्लेख मिलता है। कश्मीर भारत की बौद्धिक और सांस्कृतिक विरासत का केंद्र रहा है। ऋषि कश्यप से लेकर अभिनवगुप्त और कल्हण तक इस क्षेत्र ने कई महान विद्वानों को जन्म दिया।
2. सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण – POJK की स्थिति भारत की सुरक्षा के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह क्षेत्र काराकोरम दर्रे से जुड़ा है, जो चीन और पाकिस्तान के बीच रणनीतिक मार्ग प्रदान करता है।
3. आर्थिक महत्व – सिंधु नदी और उसकी सहायक नदियाँ इस क्षेत्र में हैं, जो भारत की जल सुरक्षा के लिए आवश्यक हैं। इसके अलावा, इस क्षेत्र में खनिज और अन्य प्राकृतिक संसाधनों की भी प्रचुरता है।
भारत की वर्तमान स्थिति और कूटनीतिक प्रयास:
भारत ने समय-समय पर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर स्पष्ट किया है कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है और पाकिस्तान का कब्जा अवैध है। 2019 में अनुच्छेद 370 हटाने के बाद भारत ने जम्मू-कश्मीर के पूर्ण एकीकरण की दिशा में ठोस कदम उठाए हैं।
भारत लगातार अंतरराष्ट्रीय समुदाय से मांग करता है कि पाकिस्तान से POJK को खाली करवाने में सहयोग करे। भारत सरकार ने पाकिस्तान के कब्जे वाले क्षेत्रों को वापस लाने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराई है।
जनमानस की आकांक्षा:
POJK को वापस पाना न केवल भारत की संप्रभुता की रक्षा के लिए आवश्यक है, बल्कि वहां के निवासियों के अधिकार और कल्याण के लिए भी महत्वपूर्ण है। भारतीय जनता में यह विश्वास है कि एक दिन वह भूमि पुनः भारत के नियंत्रण में आएगी।
22 फरवरी 1994 को भारतीय संसद द्वारा पारित प्रस्ताव भारत की संप्रभुता, अखंडता और दृढ़ निश्चय का प्रतीक है। यह न केवल पाकिस्तान के अवैध कब्जे को चुनौती देता है, बल्कि भारत की उस ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और कानूनी सच्चाई को दोहराता है कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग था, है और रहेगा।
आज जब भारत अपनी सीमाओं की सुरक्षा को और मजबूत कर रहा है, तब POJK की वापसी का संकल्प और भी प्रासंगिक हो जाता है। यह प्रस्ताव भविष्य में भारत की कूटनीतिक और रणनीतिक नीति का आधार बना रहेगा और भारतीय जनमानस की आकांक्षा को आगे बढ़ाएगा।
-यह लेखक के निजी विचार हैं