सावित्रीबाई फुले, जो भारत की पहली महिला शिक्षिका और सामाजिक सुधारक थीं, का जन्म 3 जनवरी 1831 को महाराष्ट्र के नायगांव में हुआ था। उन्होंने अपने पति ज्योतिराव फुले के साथ मिलकर महिलाओं की शिक्षा और दलितों के अधिकारों के लिए क्रांतिकारी काम किए।
उनके योगदान:
1. महिलाओं की शिक्षा: सावित्रीबाई फुले ने 1848 में पुणे में देश का पहला महिला विद्यालय स्थापित किया। यह कदम उस समय की परंपराओं और समाज की सोच के खिलाफ था।
2. जाति और लिंग भेदभाव का विरोध: उन्होंने समाज में व्याप्त जाति और लिंग आधारित भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाई और समाज के निचले तबकों को मुख्यधारा में लाने का काम किया।
3. महिला सशक्तिकरण: सावित्रीबाई महिलाओं के अधिकारों और उनके आत्मनिर्भर बनने की वकालत करती थीं। उन्होंने विधवा पुनर्विवाह का समर्थन किया और बाल विवाह के खिलाफ काम किया।
4. सामाजिक न्याय: सावित्रीबाई और ज्योतिराव फुले ने “सत्यशोधक समाज” की स्थापना की, जिसका उद्देश्य जातिवाद और धार्मिक रूढ़िवाद का खंडन करना था।
सावित्रीबाई फुले का महत्व:
सावित्रीबाई फुले का जन्मदिन हर साल 3 जनवरी को महिलाओं की शिक्षा, सामाजिक न्याय और समता के क्षेत्र में उनके योगदान को याद करने के लिए मनाया जाता है। आज उनका नाम नारी सशक्तिकरण और सामाजिक सुधार के प्रतीक के रूप में लिया जाता है।
उनकी शिक्षाएँ और कार्य आज भी प्रासंगिक हैं और समाज में समानता और न्याय की ओर प्रेरणा देते हैं।