हिन्दुस्तान मिरर उत्तर प्रदेश भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को आगामी 25 जनवरी तक नया प्रदेश अध्यक्ष मिल सकता है। दिल्ली में पार्टी के राष्ट्रीय मुख्यालय में इस संबंध में मंथन तेज हो गया है, जिसमें पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने बैठक की। इस चर्चा में प्रमुख नेताओं के रूप में डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य, वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी और संगठन महामंत्री धर्मपाल सिंह ने अचानक दिल्ली पहुंचकर प्रदेश अध्यक्ष पद को लेकर विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की। पार्टी सूत्रों के अनुसार, भाजपा इस बदलाव को आगामी विधानसभा चुनाव 2027 और समाजवादी पार्टी (सपा) द्वारा किए गए पीडीए कार्ड को तोड़ने की रणनीति के हिस्से के रूप में देख रही है।
पार्टी की केंद्रीय कमान आगामी प्रदेश अध्यक्ष के चयन में जातीय संतुलन बनाने के लिए सतर्क है। यूपी के जातीय समीकरण को ध्यान में रखते हुए यह निर्णय लिया जाएगा। खासकर, भाजपा विपक्ष की ओर से डॉ. भीमराव अंबेडकर के अपमान और संविधान को लेकर उठाए गए सवालों का असर कम करने के लिए दलित वर्ग से प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त करने पर विचार कर रही है।
प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए प्रमुख दावेदार
प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए कई नेताओं के नाम चर्चा में हैं, जो विभिन्न जाति समूहों का प्रतिनिधित्व करते हैं और यूपी की राजनीतिक स्थिति के हिसाब से महत्वपूर्ण हो सकते हैं:
1. दलित वर्ग के दावेदार:
भाजपा में दलित वर्ग को लेकर हाल ही में विपक्ष द्वारा उठाए गए मुद्दों के मद्देनजर पार्टी के नेतृत्व को यह सुनिश्चित करना है कि दलित समुदाय को प्रतिनिधित्व मिले। इस संदर्भ में कई प्रमुख नाम सामने आ रहे हैं:
• विनोद सोनकर (कौशांबी के पूर्व सांसद)
• रामशंकर कठेरिया (इटावा के पूर्व सांसद)
• प्रियंका मौर्य (प्रदेश महामंत्री एवं पूर्व सांसद)
• कौशल किशोर (पूर्व मंत्री)
2. कुर्मी वोट बैंक को साधने के लिए:
भाजपा की रणनीति कुर्मी समाज को अपने पक्ष में करने की है, और इसके लिए जलशक्ति मंत्री स्वतंत्र देव सिंह का नाम प्रमुख रूप से सामने आया है।
3. लोध समाज से दावेदार:
भाजपा के लिए लोध समाज भी एक महत्वपूर्ण वोट बैंक है। इसके लिए केंद्रीय मंत्री बीएल वर्मा, पूर्व सांसद राजबीर सिंह उर्फ राजू भैया ,पशुधन मंत्री धर्मपाल सिंह, राज्यसभा सदस्य अमरपाल मौर्य, नामित किए जा सकते हैं।
4. निषाद समाज के दावेदार:
भाजपा के लिए निषाद समाज को संतुष्ट करने के लिए राज्यसभा सदस्य बाबूराम निषाद और पूर्व केंद्रीय मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति का नाम चर्चा में है।
5. ब्राह्मण समाज के दावेदार:
ब्राह्मण समाज से भी भाजपा को एक प्रमुख नेता चुनने का दबाव है। इस वर्ग के लिए नामित होने वाले प्रमुख नेता हैं:
• महेश शर्मा (नोएडा के सांसद)
• डॉ. दिनेश शर्मा (पूर्व डिप्टी सीएम एवं राज्यसभा सदस्य)
• गोविंद नारायण शुक्ला (प्रदेश महामंत्री)
• हरीश द्विवेदी (राष्ट्रीय मंत्री)
• सुब्रत पाठक (पूर्व सांसद)
6. वैश्य समाज:
यूपी में वैश्य समाज को भाजपा का परंपरागत वोट बैंक माना जाता है, लेकिन पिछले एक दशक से वैश्य समाज को भाजपा में किसी महत्वपूर्ण पद पर प्रतिनिधित्व नहीं मिला है। इस कारण वैश्य समाज में भीतर ही भीतर नाराजगी पनप रही है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि वैश्य समाज की नाराजगी के कारण ही भाजपा को मुरादाबाद जैसे क्षेत्रों में लोकसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था।
पार्टी नेतृत्व का निर्णय और केंद्रीय मंत्री की भूमिका:
पार्टी सूत्रों के अनुसार, केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल 22 जनवरी को लखनऊ आएंगे और प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए नामांकन की प्रक्रिया की शुरुआत करेंगे। गोयल की मौजूदगी में नामांकन दाखिल कराया जाएगा, जिसके बाद केंद्रीय नेतृत्व प्रदेश अध्यक्ष के नाम की घोषणा करेगा। इस प्रक्रिया के दौरान पार्टी का राष्ट्रीय नेतृत्व भी विभिन्न जाति समूहों के बीच संतुलन बनाने की कोशिश करेगा, ताकि आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा को मजबूती मिल सके।
इस सबके बीच, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव यूपी की राजनीति में एक बड़ा कदम माना जा रहा है, जो 2027 के विधानसभा चुनाव के परिणामों को प्रभावित कर सकता है।
रिपोर्ट: हिन्दुस्तान मिरर